वह औरत स्टॆशन पर भीख माग रही,बूडी जर्जर काया फ़टॆ कपडॆ मे लिपटी, आस पास लोगो का हजूम,सुन्दर, नये नवेले,रन्ग बिरन्गे कपडो मे दूर से देख रही थि मे उसे,मेरे पास आई,हाथ मे कुछः सिक्के लिये उधर पुल की सीडियो पर...वो पागल,बडबडा रहा,इधर उधर ताक रहा पहुची मे पुल के करीब,पागल को पास देख घबरा गयी......डर गयी वो औरत बेखौफ़ आगे निकल गयी,निशःब्द चल्ति गयी तभी पागल की बड्बडाहट पर ध्यान गया, कुछः अमीरो के बारे मे कह रहा था,गाली बक रहा था उस औरत के बारे मे भी कुछः बोला,उसे नादान कह रहा था बोला....कोइ नही देगा पैसा,मात माग,मुझ से ले,मे दूगा प्रधान्मन्त्री से दिलवा दूगा,फिर सिर पर हाथ मारा,.. बोला.....चिल्लाने लगा,कोई नही देगा पैसा कोई नही देगा पर मे दूगा,आ मुझ से ले ,भीक मत मान्ग,सब बेदर्द है उस्ने पास पडे सिक्के और खाने का सामान लिया....और भागा पहुचा बुडिया के पास और उसको पकडाकर,ताली बजाने लगा लोगो क हजूम बोला...........पागल है..........पागल है चेहरे पर शान्त भाव लिये वह पागल सीडियो पर वापिस आ गया तो मे सोचने पर विवशः हो गयी.......क्य वो सच्मुच पागल है अगर है ,तो भावना की उत्पत्ति कहन से हुयी,दर्द कहा से आया फिर लगा,पागल नही गरिबी की मार ने उसे पागल बनाया इसलिये तो उसे उस गरीब का दर्द समझः आया,दया का भाव जागा
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