मन की दुविधायों से बाहर निकल रे मन
कुछ अच्छा सोच, म्रग तृष्णायों से भ्रमित न हो, रे मन
जीवन मिला ,इसे यू ही व्यर्थ न कर, हे मन
बन जा अडिग,अटल निश्चल, निस्वार्थ ,हे मन
क्यों परेशान, क्यों बैचेन-चल किसी को बता दें रे मन
अपने किसी कांधे, पर सर रख,चल ,थोडा सा रो ले,रे मन